
लोकसभा में आज का माहौल थोड़ा टेक-टेक सा रहा। केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने विपक्ष के “स्नूपिंग ऐप” वाले सवालों पर सीधा, सटीक… और थोड़ा सटायर-सा जवाब दिया— “संचार साथी से Snooping न संभव है और न कभी होगी.”
यानि विपक्ष का आरोप
“सरकार जासूसी करेगी!”
सरकार का जवाब:
“महाराज, ऐप है… NSA का सॉफ्टवेयर नहीं!”
विपक्ष के सवाल: ‘Privacy Alert!’
सरकार ने स्मार्टफोन कंपनियों को निर्देश दिया कि नए हैंडसेट में संचार साथी ऐप प्री-इंस्टॉल किया जाए।
बस… यही से बवाल शुरू।
विपक्ष बोला—
“यह Privacy Invasion है!”
“सरकार हमारे फोन में झांकना चाहती है!”
लेकिन सिंधिया ने पूरा सिस्टम क्लियर कर दिया:
“App uninstall भी कर सकते हैं, और जब तक यूजर खुद रजिस्टर नहीं करेगा—ये चालू भी नहीं होगा.”
मतलब— Door तो है, पर चाबी यूजर के पास।
‘संचार साथी क्यों आया?’—सरकार का लॉजिक
सिंधिया के मुताबिक:

- देश में 1 अरब मोबाइल यूजर्स
- उनमें से कुछ करके जाते हैं—फ्रॉड, स्कैम, मिसयूज़
- सरकार बोली: “सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है”
साल 2023 में इसी वजह से पोर्टल शुरू हुआ था। अब वही ऐप बन गया—लेकिन use करना optional है।
यूजर चाहे तो इसे किसी भी ऐप की तरह DELETE कर सकता है… क्या जासूसी वाला ऐप ऐसे हटता है?
विपक्ष— “फिर भी शक है!”
सरकार— “शक का इलाज लॉजिक है, WhatsApp नहीं।”
संचार साथी ऐप प्री-इंस्टॉल होगा लेकिन एक्टिवेशन यूजर की मर्जी। ऐप को जब चाहें हटाया जा सकता है। सरकार का दावा: कोई snooping system नहीं। विपक्ष: प्राइवेसी पर खतरे का दावा जारी।
“अब नौकरी में ‘प्रमोशन’ चाहिए तो बताओ—कितनी ज़मीन–जायदाद है बाबू!”
